स्‍वास्‍थ्‍यकर्मी को संक्रमण से बचाने के लिए अब रोबोट करेगा कोरोना टेस्‍ट , जानें कैसे

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डेनमार्क । एक तरफ जहां कोरोना से शुरू हुई जंग में बड़ी संख्‍या में स्‍वास्‍थ्‍यकर्मी और दूसरे योद्धा इसकी चपेट में आ रहे हैं वहीं डेनमार्क ने इसका एक सफल उपाय खोज निकाला है। यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न डेनमार्क ने दुनिया का पहला पूरी तरह ऑटोमैटिक रोबोट तैयार कर लिया है। ये अकेले ही कोविड-19 का टेस्ट करने में सक्षम है। इसकी वजह से स्‍वास्‍थ्‍यकर्मी सीधेतौर पर इसकी चपेट में आने से बच सकते हैं।

 

इस रोबोट को बनाने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि किसी व्‍यक्ति में कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाने के लिए खून की जांच से लेकर स्वॉब टेस्ट तक किया जाता है। स्‍वाब टेस्‍ट के लिए नाक या गले के अंदर एक लंबा सा ईयरबड जैसा दिखने वाला स्वॉब डाल कर सैंपल लिया जाता है, लेकिन इसमें सैंपल लेने वाले के संक्रमित होने का खतरा रहता है। वहीं दूसरी तरफ ये टेस्‍ट इसकी जांच के लिए कफी कारगर माना गया है। इससे आने वाले परिणाम काफी सटीक होते हैं।

डेनमार्क के शोधकर्ताओं द्वारा बनाए गए इस रोबोट को जून से काम में लगाया जा सकता है। इस रोबोट की सबसे बड़ी खासियत है कि इसे 3डी प्रिंटर की मदद से तैयार किया गया है। कोरोना टेस्‍ट को लेकर इसकी प्रक्रिया वही है जो एक इंसान की होती है। ये रोबोट अपने सामने बैठे मरीज के मुंह में स्वॉब डालता था। सैंपल ले कर रोबोट ही स्वॉब को टेस्ट ट्यूब में डाल कर उसको ढक्कन से बंद कर देता है। इस रोबोट को बनाने में थियुसियुस रजीत सवारीमुथु समेत उनकी दस शोधकर्ताओं की टीम शामिल थी।

आपको बता दें कि जब से इस जानलेवा महामारी ने दुनिया को अपनी चपेट में लेना शुरू किया था तब से ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ज्यादा से ज्यादा टेस्ट करने पर जोर रहा है। लेकिन जितने ज्यादा टेस्ट हो रहे हैं, उतना ही स्वास्थ्यकर्मियों पर खतरा बढ़ता जा रहा है। पूरी दुनिया में कई स्‍वास्‍थ्‍यकर्मी इसकी चपेट में आ चुके हैं। ऐसी स्थिति में ये रोबोट काफी मददगार साबित हो सकता है। प्रोफेसर रजीत का कहना है कि ना केवल कोरोना वायरस के मामले में, बल्कि भविष्य में होने वाली ऐसी दूसरी बीमारियों में भी इस रोबोट से फायदा मिल सकेगा। इससे सामान्य फ्लू की टेस्टिंग भी की जा सकेगी।

गौरतलब है कि दुनियाभर में फैली इस जानलेवा बीमारी के बाद से स्‍वास्‍थ्‍यकर्मी दिन रात अपने काम को अंजाम देने में जुटे हैं। ऐसे में उन्‍हें कई तरह की समस्‍या का सामना भी करना पड़ रहा है। इसकी एक बड़ी वजह स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा पहनी जाने वाली पीपीई किट भी है। इसको एक बार इस्‍तेमाल करने के बाद दोबारा इस्तेमाल नहीं लाया जाता है। ऐसे में उन्‍हें एक ही किट से अधिक से अधिक देर तक काम करना पड़ता है। इस किट को पहनकर टॉयलेट जाने या कुछ खाने पीने की भी इजाजत नहीं होती है।

वहीं, यदि रोबोट की बात करें तो ये बिना रुके घंटों तक काम कर सकता है। इसके बनने के बाद उम्मीद की जा रही है कि हवाईअड्डों पर इस तरह के रोबोट लगाए जा सकेंगे ताकि स्‍वास्‍थ्‍यकर्मियों को खतरे में डाले बिना अधिक संख्या में टेस्ट मुमकिन हो सकेंगे। इस प्रोटोटाइप का बड़े पैमाने पर निर्माण होने में तीन से चार महीने लग सकते हैं।

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